बहुत समय पहले की बात है, सिंध नामक प्रदेश में एक गरीब गाँव था। जहाँ के अधिकांश लोग गरीब थे। उसी गाँव में एक ऐसा परिवार था जिसकी बातें सब किया करते थे क्यूंकि इस परिवार की हालत बाकी परिवारों से भी बुरी थी। इस परिवार में बस चार लोग थे माँ, पिता और बेटा और बेटे की पत्नी।
बेटा अपनी पत्नी के साथ कुछ पैसे कमाने के लिए अपने गाँव से दूसरे गाँव जाता है जहाँ की स्तिथि उनके गाँव से अच्छी थी, ताकि कुछ पैसे कमा कर अपना घर चला सके। दोनों पति – पत्नी जैसे तैसे अपना गुज़ारा कर रहे थे। दूसरे गाँव जाने के बाद भी उन्हें काफ़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था, क्यूंकि उनके पास नाही साधन था और न ही पैसा जिससे अपनी जीविका चला सकें। वह दोनों अपने साथ दो बकरियाँ लेकर आते हैं जिनका ध्यान रखना भी आवश्यक था जिन्हे गरीब आदमी सुबह चारा चरने के लिए खेत ले जाता था और शाम को वापस ले आता था।
एक समय ऐसा आया कि उनके पास खाने के लिए कुछ नहीं था। दुकानदार भी उन्हें कुछ उधार नहीं दे रहे थे, उन्हें ऐसे ही खाली पेट सोना पड़ रहा था। दोनों का जीवन बहुत कठिन हो गया था ऊपर से उन्हें अपने माता-पिता के लिए भी कुछ पैसे भेजने थे जो कि मुमकिन नहीं था।
एक दिन जब वह आदमी अपने बकरियों को चराने के लिए खेत ले जाता है जहाँ एक टेबल पर एक प्राचीनकाल घोड़े की मूर्ती पोलिश करके रखी रहती है और वहाँ उसे एक अंग्रेज़ अफसर दिखाई देता है जिसे देखकर सर्वप्रथम कुछ फ़र्क नहीं पड़ता लेकिन फिर वह बहुत घबरा जाता है। अंग्रेज़ उसके करीब आता है। गरीब आदमी सोचता है कि मुझे तो बस अंग्रेजी के दो ही शब्द आते हैं ‘यस’ और ‘नो’ , और वह इन्ही दोनों शब्दों को इस्तेमाल करके उससे बात करने का निर्णय करता है।

वहीं रखी टेबल पर प्राचीनकाल की घोड़े की मूर्ती अंग्रेज़ को बहुत पसंद आई और उसने तुरंत उस घोड़े का दाम उस गरीब आदमी से अंग्रेज़ी में पूछ लिया ” व्हाट इस दी प्राइज ऑफ़ दिस स्टेचू ?”। गरीब आदमी को लगा कि वह उससे उसकी बकरियों की बात कर रहा है।
गरीब आदमी को कुछ समझ नहीं आता है लेकिन जब अंग्रेज़ ने अतरंगी ढंग से पुछा “खितने रूफे का है” तो उसको समझ आया और वह अपने बकरियों का दाम सौ रुपया बताता है। अंग्रेज़ उसको दो सौ रूपए देता है, और गरीब आदमी पैसे देखते ही उतावला होकर ख़ुशी से झूमते हुए ज़ल्दबाज़ी में अपने बकरियों को वहीं छोड़कर अपने घर आ जाता है और अंग्रेज़ उस घोड़े की मूर्ती को लेकर ख़ुशी – ख़ुशी चला जाता है।

गरीब आदमी जब अपने घर पंहुचा और उन रूपए को अपनी पत्नी को दिया तोह उसकी पत्नी को लगा की यह पैसे चोरी के हैं । तभी उसकी सभी बकरियाँ आ जाती हैं। और वह आदमी सारी बात अपनी पत्नी को बता देता है किन्तु उसकी पत्नी कहती है कि यह पैसे गलती से आपको मिले हैं कल जाकर आप पता कीजियेगा कि क्या बात है।
अगले दिन जब वह आदमी वापस खेत जाता है तो वहाँ एक बुजुर्ग व्यक्ति अपना सर पकड़ कर रो रहा होता है, वह उससे पूछता है तो बुजुर्ग व्यक्ति बताता है कि उसकी घोड़े की मूर्ती कल शाम से गायब है। तब वह आदमी समझ जाता है सारी बाात और सारी बात बताते हुए वो दो सौ रूपए उस बुजुर्ग को दे देता है। गरीब आदमी बहुत दुखी हो जाता है क्यूंकि अभी भी उसकी हालत वैसी की वैसी ही है। बुजुर्ग व्यक्ति उसकी ईमानदारी देखकर उसे अपने पास काम करने के लिए रख लेता है और उस दो सौ में से सौ रूपए अपने माता – पिता को भिजवाने के लिए दे देता है।
गरीब आदमी उनके साथ बहुत कुछ सीखता है। यहाँ से उस गरीब आदमी की ज़िन्दगी में बदलाव आना शुरू हो जाता है और धीरे-धीरे उसके घर की हालत भी सुधर जाती है। इसके बाद कुछ सालों के भीतर वह आदमी अपने गाँव में ही प्राचीन मूर्तियों कि पोलिश का धंदा शुरू करता है और गाँव के अधिकतर लोगों को उसमे शामिल करता है , इससे धीरे-धीरे उस गाँव कि स्तिथि में भी सुधर आ जाती है।
यह गाँव अब गरीब नहीं रहा , इसके पड़ोस के गाँव भी इस गाँव से सीख लेकर अपने – अपने गाँव की वृद्धि में जुट जाते हैं।
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